Pages

Thursday, January 10, 2019

11 January, 1966: Passing away of Lal Bahadur Shastri


अमर कीर्ति - शास्त्रीजी
-काका साहब कालेलकर
(उद्धरण)

             भारत रत्न श्री लालबहादुर शास्त्री भारत की और मानवता की उत्तम सेवा करके अमर हो गये।
          जवाहरलाल जी के बाद जब शास्त्री जी का सर्वानुमति से चुनाव हुआ तब कई लोगों ने कहा, “जिसके नाम का तनिक भी विरोध न हो सके ऐसे तो लालबहादुर ही है। लेकिन ये छोटे बामनमूर्ति भारत की जटिल और चिन्ताग्रस्त परिस्थिति को कैसे सम्भालेंगे इसका अन्दाज हो नहीं सकता।

          ...एक दफ़ा मैंने उनसे कहा था गंगा और यमुना भिन्न रंगों श्रोतों के संगम के नज़दीक आप रहते हैं आप में समन्वय की कुशलता होनी ही चाहिए। मैंने जो कहा, लालबहादुर जी के काम को पहचान कर नहीं, किन्तु प्रयागराज के महात्म्य को ध्यान में लाकर कहा था। अब जब शास्त्री जी के जीवन का सम्पूर्ण चित्र मन में लाता हूं, तब विश्वास होता है कि उस दिन मैंने जो यूं ही कहा था, वह शास्त्री जी के लिए पूरा-पूरा लागू होता है। मेरा चिन्तन कहता है कि समन्वय कुशल वे ही होते हैं जिनमें अहंकार नहीं होता और जो सिद्धांत के कैफ को भी दूर रख सकते हैं, यानी जो लोग अहंकार को छोड़कर, स्वार्थ और एकाग्रिता को छोड़कर, समग्र जीवन के उपासक होते हैं।
       
         ....किसी ने उनके नरम स्वभाव की टिप्पणी की होगी, तब जवाब में उन्होंने कहा था: मैं वाणी में नरम हूं, इसलिए आप यह न समझें कि राष्ट्र कार्य चलाने में और राष्ट्रनीति का अमल करने में मैं ढीला हूं। मैं दृढ़ता के साथ काम भी कर सकता हूं और लोगों से काम ले भी सकता हूं।
राष्ट्र नेता के साथ काम करते कैसी निष्ठा से सहयोग देना चाहिए इसका आदर्श शास्त्री जी ने देश के सामने रखा।
     
         जब पाकिस्तान ने प्रथम कच्छ के रण में और बाद में कश्मीर के प्रदेश में आक्रमण शुरू किया, तब अय्यूब खां ने ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा कि शास्त्री जी उन्हें सबक सिखानें के लिए अपनी फौजें लाहौर और रावलपिण्डी तक भेज देंगे। लड़ना कोई बच्चों का खेल नहीं है। जब पाकिस्तान ने आक्रमण करने की ठानी तब शास्त्री जी ने भी उस रणमत्त सेनापति को सबक सिखाने की ठानी।
     
       राष्ट्रसंघ अगर बीच में नहीं पड़ता तो पाकिस्तान की फौज की बुरी हालत हो जाती। लेकिन शास्त्री जी हृदय से शान्तिवादी थे और कभी भी पाकिस्तान के दुश्मन नहीं थे। राष्ट्रसंध की बात उन्होंने तुरन्त मान ली। पूरी विजय हाथ में आने की तैयारी थी। फिर भी युद्ध विराम उन्होंने कबूल किया। उसके बाद पाकिस्तान ने बन्दर धुड़की दिखाने की अपनी नीति बराबर चलाई लेकिन उसमें उन्होंने देखा कि स्थितप्रज्ञ शास्त्री जी न नरम होते हैं न गरम। पाकिस्तान ने कुछ भी नहीं पाया, उसने बहुत कुछ खोया, लेकिन उसे उसकी कुछ परवाह नहीं थी।
     
          ताशकन्द प्रकरण में भी शास्त्री जी ने अपनी शुद्ध भूमिका शुरू से ही स्पष्ट की थी। भारत का पक्ष न्याय का है, इतना विश्वास सब राष्ट्रों को हो गया था। अब अपने-अपने देश की नीति कैसी चलानी इसका निर्णय तो उस देश के नेता अपने-अपने स्वार्थ के अनुसार करते रहेंगे। यह बात अलग है।
     
         शास्त्री जी ने अमेरिका के साथ संबंध बिल्कुल बिगड़ने नहीं दिया जहां अमरीकी नीति उन्हें पसन्द नहीं आयी, मानवता के हित के लिए उन्होंने अपना अभिप्राय साफ-साफ जाहिर किया। उस वक्त भारत के स्वार्थ का विचार करके खामोश रहना आसान था। लेकिन शास्त्री जी ने संकुचित ख्याल नहीं रखा। रशिया में प्रयत्न की कदर करके वे ताशकन्द जाने के लिए तैयार हुए। रशिया ने भी अपनी सन्धिकारी नीति की पराकाष्टा की ओर भारत और पाकिस्तान के बीच अच्छा-सा समझौता कराया।
     
       यह देखना है कि मानव जाति का इतिहास कौन से नये पन्ने खोलता है, भारत की दृढ़ता और भारत की शान्ति निष्ठा शास्त्री जी के द्वारा पूरी-पूरी प्रगट हुई। रशिया और अमेरिका इन दोनों परस्पर विरोधी राष्ट्रों के नेताओं से शास्त्री जी साधुवाद हासिल कर सके, इससे बड़ी धन्यता कौन सी हो सकती है।
     
      भारत की अन्दरूनी राज्य नीति में भी उन्होंने सबको सम्भालते हुए बताया कि राष्ट्र का काम राष्ट्र की समग्र शक्ति से चलेगा। सब व्यक्तियों की कदर करते हुए उन्होंने बताया कि किसी भी व्यक्ति की सेवा के बिना राष्ट्र का काम रूकने वाला नहीं है। भारत की जनता जिस किसी के हाथ में अधिकार सौंपेगी उसे बुद्धि बल और हृदय बल देगी ही। शास्त्री जी के बाद इसी श्रद्धा और विश्वास के बल पर भारत का राज्य चलेगा। शास्त्री जी का जीवन धन्य हो गया।


Source: Lal Bahadur Shastri (I - II Inst.), MSS, NMML

No comments:

Post a Comment