Pages

Friday, September 29, 2017

Lal Bahadur Shastri’s address to farmers in 1965

भारतीय किसानों से                                                                                                प्रधानमंत्री निवास,          
किसान भाइयों,                                                                                                          नई दिल्ली

      दो सौ या तीन सौ करोड़ रूपया कोई छोटी राशि नहीं होती। यह रक़म हमें हर साल विदेशों से अनाज मँगाने में खर्च करनी पड़ती है। खर्च के अलावा दूसरे देशों की ओर हमें देखना पड़ता है। मैं जानता हूँ कि एक किसान कभी दूसरे के आगे अनाज के लिए हाथ फैलाना पसन्द नहीं करता। देश का स्वाभिमान सबसे ज़्यादा देश के किसानों का स्वाभिमान है, क्योंकि देश की आबादी में 100 में 70 लोग किसान हैं। इसलिए देश के स्वाभिमान की रक्षा करने की सबसे अधिक ज़िम्मेदारी भी किसानों की है। साथ ही ज़िम्मेदारी निबाहने की कुंजी भी किसान भाइयों के हाथ में है, क्योंकि वही देश में अनाज की पैदावार बढ़ा सकते हैं। यदि किसान चाहें तो यह काम कोई बहुत कठिन भी नहीं है। यदि हर किसान मन-भर की जगह सवा मन अनाज पैदा करने लगे तो विदेशों से अनाज मँगाने की ज़रूरत ही रह जाए।

      पर आज सवाल केवल देश के स्वाभिमान का अथवा देश की दौलत का नहीं रह गया है। आज सवाल देश के अस्तित्व का, देश की स्वतन्त्रता का है। इधर पाकिस्तान ने हम पर हमला किया है। उधर चीन हमारे देश पर आँख गड़ाए है। ऐसी हालत में हम विदेशों पर निर्भर नही रह सकते। सरकार ने किसान की मदद करने के लिए काफ़ी प्रयत्न किये हैं। अच्छे बीजों का, सिंचाई के पानी का, खाद (फर्टिलाइज़र) का और किसानों को कर्ज देने के लिए रूपये का प्रबन्ध किया गया है। अगले वर्षों में सरकारी मदद पहले से कहीं अधिक मात्रा में मिल सकेगी। किसानों को इससे पूरा फायदा उठाना चाहिए।

     साथ ही यह भी ज़रूरी है कि किसान अपने पैरों पर खड़ा हो। ज़्यादा-से-ज़्यादा जमीन पर पैदावार की जाए। कच्चे कुओं और तालाब आदि से सिंचाई की व्यवस्था करनी होगी। फर्टिलाइज़र खाद की कमी है, इसलिए कम्पोस्ट खाद अधिक से अधिक बनानी होगी। हर किसान का नारा होना चाहिए ‘’1965 में एक मन तो में सवा 1966 मन’’

Source: Lal Bahadur Shastri Papers (I Inst.), MSS Section, NMML

No comments:

Post a Comment