प्रणामांजलि
यह हर्ष की बात है कि पटना में १४ अप्रैल को डा० भीमराव अम्बेडकर की ९९वीं जयन्ती मनायी जा रही है।
डा० अम्बेडकर की प्रशंसा में कुछ कहना सूर्य को दीप दिखाना है। उनके तेजोमय व्यक्तित्व से आज कौन परिचित नहीं है? भारतीय संविधान के निर्माण में उनकी पांडित्यपूर्ण प्रतिमा का सर्वाधिक योगदान रहा जिसके बल पर उन्होने ‘कलियुग के धनु’ की उपाधि अर्जित की। वे इस सम्मान के वास्तविक अधिकारी थे।
डा० अम्बेडकर न केवल महान पंडित और मनीषी थे, बल्कि महान विद्रोही भी थे। हिन्दू समाज की रूढ़ियों और जीर्णशीर्णं परम्पराओं के विरूद्ध उन्होंने विद्रोह किया। उनके व्यक्तित्व में सजिवात्मक और विद्रोही प्रतिमा का एक अदभुत समन्वय हुआ था।
केन्द्रीय शासन से हटने के बाद डा० अम्बेडकर विरोधी पक्षी की राजनीति में दिलचस्पी लेने लगे थे। इसी संदर्भ में उनसे मेरा व्यक्तिगत परिचय हुआ और हम एक दूसरे के निकट आये। उस समय उनके व्यक्तित्व की जो छाप मेरे मन पर पड़ी, वह आज भी अक्षुण्ण है।
इस महान भारतीय की स्मृति में मैं अपनी विनम्र प्रणामांजलि अर्पित करता हूं।
(जयप्रकाश नारायण)
पटना,
११ अप्रैल, १६७९
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