नई दिल्ली
१० जुलाई १९७९
सादर नमस्कार । नयनतारा जी के हाथों आपका पत्र तथा जीवनी पाकर बड़ी प्रसन्नयता हुई । आप इतनी शुद्ध और अच्छी हिंदी लिखती हैं यह देखकर सुखद आश्चर्य हुआ।
आपकी जीवनगाथा एक युग की गाथा है, एक समूची पीढ़ी की कहानी है। कुछ अंश मैंने पढ़े हैं। कुछ भाग तो इतने मर्मस्पर्शी हैं कि मेरे मित्र प्रो. कोल की आंखे गीली हो गई।
जीवनी की कुछ प्रतियां मंत्रालय खरीदे इस आशय का आदेश दे दिया गया है।
मैं थका-थका महसूस करता हूं, यात्राओं से नहीं; घरेलू राजनीति की यातनाओं से । शायद जल्दी ही छुटकारा मिल जाए।
स्नेह बना रहे।
भवदीय,
अटल बिहारी वाजपेयी
Source : Vijaya Lakshmi Pandit papers, MSS, NMML
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